31-12-91  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

यथार्थ चार्ट का अर्थ है - प्रगति और परिवर्तन

नव वर्ष पर अव्यक्त बापदादा अपने बच्चों प्रति बोले :

आज बापदादा अपने विश्व नव-निर्माता बच्चों को देख रहे हैं। आज के दिन नये वर्ष के आरम्भ को दुनिया में चारों ओर मनाते हैं। लेकिन वो मनाते हैं नया वर्ष और आप ब्राह्मण आत्माएं नये संगमयुग में हर दिन को नया समझ मनाते रहते हो। वो एक दिन मनाते हैं और आप हर दिन को नया अनुभव करते हो। वो हद के वर्ष का चक्र है और ये बेहद सृष्टि चक्र का नया संगमयुग है। संगमयुग सारे युगों में सर्व प्रकार की नवीनता लाने का युग है। आप सभी अनुभव करते हो कि संगमयुगी ब्राह्मण जीवन नया जीवन है। नई नॉलेज द्वारा नई वृत्ति, नई दृष्टि और नई सृष्टि में आ गये हो। दिन-रात, हर समय, हर सेकेण्ड नया लगता है। सम्बन्ध भी कितने नये बन गये! पुराने सम्बन्ध और ब्राह्मण सम्बन्ध में कितना अन्तर है! पुराने सम्बन्धों की लिस्ट स्मृति में लाओ कितनी लम्बी है! लेकिन संगमयुगी नये युग के नये सम्बन्ध कितने हैं? लम्बी लिस्ट है क्या? बापदादा और भाई-बहन और कितने निस्वार्थ प्यार के सम्बन्ध हैं! वह है अनेक स्वार्थ के सम्बन्ध। तो नया युग, छोटा सा नया ब्राह्मण संसार ही अति प्यारा है।

दुनिया वाले एक दिन एक दो को मुबारक देते हैं और आप क्या करते हो? बापदादा क्या करते हैं? हर सेकेण्ड, हर समय, हर आत्मा के प्रति शुभ-भावना, शुभ-कामना की मुबारक देते हैं। जब भी किसी को, किसी भी उत्सव के दिन की मुबारक देते हैं तो क्या कहते हैं? खुश रहो, सुखी रहो, शक्तिशाली रहो, तन्दरूस्त रहो। तो आप हर समय क्या सेवा करते हो? आत्माओं को नई जीवन देते हो। आप सबको भी बापदादा ने नई जीवन दी है ना! और इस नई जीवन में यह सभी मुबारकें सदा के लिए मिल ही जाती हैं। आप जैसे खुशनसीब, खुशी के खज़ानों से सम्पन्न, सदा सुखी और कोई हो सकता है! इस नवीनता की विशेषता आपके देवताई जीवन में भी नहीं है। तो हर समय स्वत: ही बापदादा द्वारा मुबारक, बधाइयाँ वा ग्रीटिंग्स मिलती ही रहती हैं। दुनिया वाले नाचेंगे, गायेंगे और कुछ खायेंगे। और आप क्या करते हो? हर सेकेण्ड नाचते और गाते रहते हो और हर रोज ब्रह्मा भोजन खाते रहते हो। लोग तो खास पार्टाज़ अरेंज करते हैं और आपकी सदा ही संगठन की पार्टाज़ होती रहती हैं। पार्टाज़ में मिलन होता है ना। आप ब्राह्मणों की अमृतवेले से पार्टा शुरू हो जाती है। पहले बापदादा से मनाते हो, एक में अनेक सम्बन्ध और स्वरूपों से मनाते हो। फिर आपस में ब्राह्मण जब क्लास करते हो तो संगठन में मिलन मनाते हो ना, और मुरली सुनते-सुनते नाचते हो, गाते हो। और हर समय उत्साह भरे जीवन में उड़ते रहते हो। ब्राह्मण जीवन का श्वांस ही है उत्साह। अगर उत्साह कम होता है तो ब्राह्मण जीवन के जीने का मज़ा नहीं होता है। जैसे शरीर में भी श्वांस की गति यथार्थ चलती है तो अच्छी तन्दरूस्ती मानी जाती है। अगर कभी बहुत तेज गति से चले, कभी स्लो हो जाये तो तन्दरूस्ती नहीं मानी जायेगी ना। ब्राह्मण जीवन अर्थात् उत्साह, निराशा नहीं। जब सर्व आशाएं पूर्ण करने वाले बाप के बन गये तो निराशा कहाँ से आई? आपका आक्युपेशन ही है निराशावादी को आशावादी बनाना। यही सेवा है ना! यह तो दुनिया के हद के चक्कर अनुसार आप भी दिन को महत्व दे रहे हो लेकिन वास्तव में आप सब ब्राह्मण आत्माओं का संगमयुग ही नवीनता का युग है। नई दुनिया भी इस समय बनाते हो। नई दुनिया का ज्ञान इस समय ही आप आत्माओं को है। वहाँ नई दुनिया में नये-पुराने का नॉलेज नहीं होगा। नये युग में नई दुनिया स्थापन कर रहे हो।

सभी ने तपस्या वर्ष में तपस्या द्वारा अपने में अलौकिक नवीनता लाई है? कि वही पुरानी चाल है? पुरानी चाल कौन सी है? योग अच्छा है, अनुभव भी अच्छे होते हैं, आगे भी बढ़ रहे हैं, धारणा में भी बहुत फर्क है, अटेन्शन भी बहुत अच्छा है, सेवा में भी वृद्धि अच्छी है.. लेकिन, लेकिन का पूंछ लग जाता है। कभी-कभी, ऐसा हो जाता है। यह कभी कभी का पूंछ कब तक समाप्त करेंगे? तपस्या वर्ष में यही नवीनता लाओ। पुरूषार्थ वा सेवा के सफलता की, सन्तुष्टता की परसेन्टेज़ कभी बहुत ऊंची, कभी नीची- इसमें सदा श्रेष्ठ परसेन्टेज़ की नवीनता लाओ। जैसे आजकल के डॉक्टर्स ज्यादा क्या चेक करते हैं? सबसे ज्यादा आजकल ब्लड प्रेशर बहुत चेक करते हैं। अगर ब्लड का प्रेशर कभी बहुत ऊंचा हो, कभी नीचा चला जाये तो क्या होगा? तो बापदादा पुरूषार्थ का प्रेशर देखते हैं, बहुत अच्छा जाता है, लेकिन कभी कभी जम्प मारता है । यह कभी कभी का शब्द समाप्त करो। अभी तो सभी इनाम लेने की तैयारी कर रहे हो ना? इस सारी सभा में ऐसे कौन हैं जो समझते हैं कि हम इनाम के पात्र बने हैं? कभी कभी वाले इनाम लेंगे?

इनाम लेने के पहले यह विशेषता देखो कि इन 6 मास के अन्दर तीन प्रकार की सन्तुष्टता प्राप्त की है? पहला- स्वयं अपना साक्षी बन चेक करो- स्व के चार्ट से, स्वयं सच्चे मन, सच्चे दिल से सन्तुष्ट हैं?

दूसरा- जिस विधि-पूर्वक बापदादा याद के परसेन्ट को चाहते हैं, उस विधि-पूर्वक मन-वचन-कर्म और सम्पर्क में सम्पूर्ण चार्ट रहा? अर्थात् बाप भी सन्तुष्ट हो।

तीसरा- ब्राह्मण परिवार हमारे श्रेष्ठ योगी जीवन से सन्तुष्ट रहा? तो तीनों प्रकार की सन्तुष्टता अनुभव करना अर्थात् प्राइज़ के योग्य बनना। विधि-पूर्वक आज्ञाकारी बन चार्ट रखने की आज्ञा पालन की? तो ऐसे आज्ञाकारी को भी मार्क्स मिलती है। लेकिन सम्पूर्ण पास मार्क्स उनको मिलती है जो आज्ञाकारी बन चार्ट रखने के साथ-साथ पुरूषार्थ की विधि और वृद्धि की भी मार्क्स लें। जिन्होंने इस नियम का पालन किया है, जो एक्यूरेट रीति से चार्ट लिखा है, वह भी बापदादा द्वारा, ब्राह्मण परिवार द्वारा बधाइयाँ लेने के पात्र हैं। लेकिन इनाम लेने योग्य सर्व के सन्तुष्टता की बधाइयाँ लेने वाला पात्र है। यथार्थ तपस्या की निशानी है कर्म, सम्बन्ध और संस्कार - तीनों में नवीनता की विशेषता स्वयं भी अनुभव हो और औरों को भी अनुभव हो। यथार्थ चार्ट का अर्थ है हर सब्जेक्ट में प्रगति अनुभव हो, परिवर्तन अनुभव हो। परिस्थितियाँ व्यक्ति द्वारा या प्रकृति द्वारा या माया द्वारा आना यह ब्राह्मण जीवन में आना ही है। लेकिन स्व-स्थिति की शक्ति ने परिस्थिति के प्रभाव को ऐसे ही समाप्त किया जैसे एक मनोरंजन की सीन सामने आई और गई। संकल्प में परिस्थिति के हलचल की अनुभूति न हो। याद की यात्रा सहज भी हो और शक्तिशाली भी हो। पावरफुल याद एक समय पर डबल अनुभव कराती है। एक तरफ याद अग्नि बन भस्म करने का काम करती है, परिवर्तन करने का काम करती है और दूसरे तरफ खुशी और हल्केपन का अनुभव कराती है। ऐसे विधि-पूर्वक शक्तिशाली याद को ही यथार्थ याद कहा जाता है । फिर भी बापदादा बच्चों के उमंग और लगन को देख खुश होते हैं। मैजारिटी को लक्ष्य अच्छा स्मृति में रहा है। स्मृति में अच्छे नम्बर लिये हैं। स्मृति के साथ समर्थी, उसमें नम्बरवार हैं। स्मृति और समर्थी, दोनों साथ-साथ रहना - इसको कहेंगे नम्बरवन प्राइज़ के योग्य। स्मृति सदा हो और समर्थी कभी कभी वा परसेन्टेज में रहना - इसको नम्बरवार की लिस्ट में कहेंगे । समझा। एक्यूरेट चार्ट रखने वालों के भी नामों की माला बनेगी। अभी भी बहुत नहीं तो थोड़ा समय तो रहा है, इस थोड़े समय में भी विधि-पूर्वक पुरूषार्थ की वृद्धि कर अपने मन-बुद्धि-कर्म और सम्बन्ध को सदा अचल-अडोल बनाया तो इस थोड़े समय के अचल-अडोल स्थिति का पुरूषार्थ आगे चलकर बहुत काम में आयेगा और सफलता की खुशी स्वयं भी अनुभव करेंगे और औरों द्वारा भी सन्तुष्टता की दुआएं प्राप्त करते रहेंगे। इसलिए ऐसे नहीं समझना कि समय बीत गया, लेकिन अभी भी वर्तमान और भविष्य श्रेष्ठ बना सकते हो।

अभी भी विशेष स्मृति मास एक्स्ट्रा वरदान प्राप्त करने का मास है। जैसे तपस्या वर्ष का चांस मिला ऐसे स्मृति मास का विशेष चांस है। इस मास के 30 दिन भी अगर सहज, स्वत:, शक्तिशाली, विजयी आत्मा का अनुभव किया, तो यह भी सदा के लिए नेचुरल संस्कार बनाने की गिफ्ट प्राप्त कर सकते हो। कुछ भी आवे, कुछ भी हो जाये, परिस्थिति रूपी बड़े ते बड़ा पहाड़ भी आ जाये, संस्कार टक्कर खाने के बादल भी आ जायें, प्रकृति भी पेपर ले, लेकिन अंगद समान मन-बुद्धि रूपी पांव को हिलाना नहीं,

अचल रहना। बीती में अगर कोई हलचल भी हुई हो उसको संकल्प में भी स्मृति में नहीं लाना। फुल स्टॉप लगाना। वर्तमान को बाप समान श्रेष्ठ, सहज बनाना और भविष्य को सदा सफलता के अधिकार से देखना। इस विधि से सिद्धि को प्राप्त करना। कल से नहीं, अभी से करना। स्मृति मास के थोड़े सम्ाय को बहुत काल का संस्कार बनाओ। यह विशेष वरदान विधि-पूर्वक प्राप्त करना। वरदान का अर्थ यह नहीं कि अलबेले बनो। अलबेला नहीं बनना, लेकिन सहज पुरुषार्थी बनना। अच्छा-

अच्छा- कुमारियों का संगठन बैठा है। आगे बैठने का चांस मिला क्यों मिला है? सदा आगे रहना है इसलिए यह आगे बैठने का चांस मिला है। समझा! पका हुआ फल बनके निकलना, कच्चा नहीं गिर जाना। सभी पढ़ाई पूरी कर सेन्टर पर जायेंगी या घर में जायेंगी? अगर मां बाप कहे आओ तो क्या करेंगी? अगर अपनी हिम्मत है तो कोई किसको रोक नहीं सकता है। थोड़ा-थोड़ा आकर्षण होगा तो रोकने वाले रोकेंगे।

अच्छा- नव वर्ष मनाने के लिए सभी भागकर आ गये। नया वर्ष मनाना अर्थात् हर समय को नया बनाना। हर समय अपने में रूहानी नवीनता को लाना है।

अच्छा- चारों ओर के सभी स्नेही और सहयोगी बच्चे भी आज के दिन के महत्व को जान विशेष दिल से या पत्रों से या कार्डों द्वारा विशेष याद कर रहे हैं और बापदादा के पास पोस्ट करने के पहले ही पहुँच जाता है। लिखने के पहले ही पहुँच जाता है। संकल्प किया और पहुँच गया। इसलिए कई बच्चों के सहयोगियों के कार्ड पीछे पहुँचेंगे लेकिन बापदादा पहले से ही सभी को नये युग में नये दिन मनाने की मुबारक दे रहे हैं। जैसे कोई विशेष प्रोग्राम होता है ना तो आजकल के लोग क्या करते हैं? अपना टी.वी. खोलकर बैठ जाते हैं। तो सभी रूहानी बच्चे अपने बुद्धि का दूरदर्शन का स्विच ऑन करके बैठे हैं। बापदादा चारों ओर के मुबा-रक-पात्र बच्चों को हर सेकेण्ड की मुबारक की दुआएं रेसपॉन्ड में दे रहे हैं। हर समय की याद और प्यार यही दुआएं बच्चों के दिल की उमंग-उत्साह को बढ़ाती रहती हैं। तो सदा स्वयं को सहज पुरुषार्थी और सदा पुरुषार्थी, सदा विधि से वृद्धि को प्राप्त करने वाले योग्य आत्माएं बनाए उड़ते रहो।

ऐसे सदा वर्तमान को बाप समान बनाने वाले और भविष्य को सफलता स्वरूप बनाने वाले श्रेष्ठ बधाइयों के पात्र आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

पार्टियों से मुलाकात

ग्रुप नं. 1- भारत देश की महानता किसके कारण है? आप लोगों के कारण है। क्योंकि देश महान बनता है महान आत्माओं द्वारा। तो भारत की सर्व महान आत्माओं में से महान कौन? आप हैं कि दूसरे हैं? इतनी महान आत्मायें हैं जो अब चक्कर के समाप्ति में भी भारत महान, आप महान आत्माओं के कारण गाया जाता है। और कोई भी देश में इतनी महान आत्माओं का गायन या पूजन नहीं होता। चाहे कितने भी नामीग्रामी धर्मात्माएं हो गई हों या राजनेतायें होकर गये हों वा आजकल के जमाने के हिसाब से वैज्ञानिक भी नामीग्रामी हैं लेकिन किसी भी देश में उस देश की इतनी महान आत्माओं के मन्दिर हों, यादगार हों, पूजन हो, गायन हो - वह कहाँ भी नहीं होगा। चाहे विज्ञान में विदेश बहुत आगे है लेकिन गायन और पूजन में नहीं है। वैज्ञानिकों का या राजनीतिज्ञों का गायन भी होता है लेकिन उस गायन और देवात्माओं के गायन में कितना अन्तर है! ऐसा गायन वहाँ नहीं होता। तो इतनी भारत की महा-नता बढ़ाने वाले हम महान आत्मायें हैं - यह नशा कितना श्रेष्ठ है! यहाँ गली- गली में मन्दिर देखेंगे। तो इतना नशा सदा स्मृति में रखो। सुनाया ना आज कि कभी-कभी का भी शब्द समाप्त करो। अगर कभी-कभी बहुत अच्छे और कभी-कभी हलचल, तो आपके यादगार का पूजन भी कभी-कभी होगा। कई मन्दिरों में हर समय पूजन होता है, हर दिन होता है और कहाँ-कहाँ जब कोई तिथि- तारीख आती है तब होता है। तो कभी-कभी हो गया ना। लेकिन किसका सदा होता है, किसका कभी-कभी, क्यों होता है? क्योंकि इस समय के पुरूषार्थ में जो कभी-कभी लाता है उसका पूजन भी कभी-कभी होता है। जितना यहाँ विधिपूर्वक अपना श्रेष्ठ जीवन बनाते हैं उतना ही विधिपूर्वक पूजा होती है। तो मैं कौन? यह हरेक स्वयं से पूछे। अगर दूसरा कोई आपको कहेगा कि आपका पुरूषार्थ तेज नहीं लगता तो मानेंगे? या उसको इस बात से हटाने की कोशिश करेंगे। लेकिन अपने आपको तो जो हो जैसे हो वैसे जान सकते हो। इसलिए सदा अपने विधिपूर्वक पुरूषार्थ में लगे रहो। ऐसा नहीं कहो - पुरूषार्थ तो है ही। पुरूषार्थ का प्रत्यक्ष स्वरूप अनुभव हो, दिखाई दे। ऐसे महान हो! भारत की महिमा को सुनते क्या सोचते हो? यह किसकी महिमा हो रही है? ऐसे महान अनेक बार बने हो तब तो गायन होता है। अब उसको रिपीट कर रहे हैं। बने थे और बनना ही है। सिर्फ रिपीट करना है। तो सहज है ना। चाहे सम्पर्क में आते हो, चाहे स्व के प्रति कर्म करते हो, दोनों में सहज हो। भारीपन न हो। जो मुश्किल काम होता है वह भारी होता है। भारी के कारण ही मुश्किल होता है और जहाँ सहज होगा वहाँ हल्कापन होगा। तो डबल लाइट हो या ासिंगल लाइट? चाहे व्यवहार हो, चाहे परमार्थ हो, व्यवहार में भी सहज, परमार्थ माना अपना पुरूषार्थ उसमें भी सहज। लौकिक में भी सहज, अलौकिक में भी सहज, बोझ नहीं। ऐसे हो या प्रवृत्ति का थोड़ा बोझ है? अगर मेरी प्रवृत्ति समझते हो तो बोझ है। मेरा-मेरा माना बोझ और तेरा-तेरा अर्थात् हल्का। संगमयुग है ही खुशियों का युग। तो जब खुशी में कोई भी होता है तो मन हल्का होता है।

कोई अल्पकाल की खुशी में भी होंगे तो उस समय हल्कापन होगा। अगर भारीपन होगा तो खुशी में नहीं रहेगा। आर्टाफिशल खुशी की और बात है। तो सदा खुशी में रहने वाले हो ना। यह स्मृति रखो कि हमारे जैसा महान न कोई बना है, न बनेगा! वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य!

ग्रुप नं. 2- अपने को सदा सर्व खजानों से सम्पन्न आत्माएं अनुभव करते हो? कितने खज़ाने मिले हैं? खज़ानों को अच्छी तरह से सम्भालना आता है या कभी-कभी अन्दर से निकल जाता है ? क्योंकि आप आत्माएं भी बाप द्वारा नालेजफुल बनने के कारण बहुत होशियार हो लेकिन माया भी कम नहीं है। वो भी शक्तिशाली बन सामना करती है। तो सर्व खज़ाने सदा भरपूर रहे और दूसरा जिस समय जिस खज़ाने की आवश्यकता हो उस समय वो खज़ाना कार्य में लगा सको। खज़ाना है लेकिन टाइम पर अगर कार्य में नहीं लगा सके तो होते हुए भी क्या करेंगे? जो समय पर हर खज़ाने को काम में लगाता है उसका खज़ाना सदा और बढ़ता जाता है। तो चेक करो कि खज़ाना बढ़ता जाता है कि सिर्फ यही सोच करके खुश हो कि बहुत खज़ाने हैं। फिर ऐसे कभी नहीं कहो कि चाहते तो नहीं थे लेकिन हो गया। ज्ञानी की विशेषता है - पहले सोचे फिर कर्म करे। ज्ञानी- योगी तू आत्मा को समय प्रमाण टच होता है और वह फिर कैच करके प्रैक्टिकल में लाता है। एक सेकेण्ड भी पीछे सोचा तो ज्ञानी तू आत्मा नहीं कहेंगे।

ग्रुप नं. 3- सदा बाप की ब्लैसिंग स्वत: ही प्राप्त होती रहे - उसकी विधि क्या है? ब्लैसिंग प्राप्त करने के लिए हर समय, हर कर्म में बैलेन्स रखो। जिस समय कर्म और योग दोनों का बैलन्स होता है तो क्या अनुभव होता है? ब्लैसिंग मिलती है ना। ऐसे ही याद और सेवा दोनों का बैलेन्स है तो सेवा में सफलता की ब्लैसिंग मिलती है। अगर याद साधारण है और सेवा बहुत करते हैं तो ब्लैसिंग कम होने से सफलता कम मिलती है। तो हर समय अपने कर्म-योग का बैलेन्स चेक करो। दुनिया वाले तो यह समझते हैं कि कर्म ही सब कुछ है लेकिन बापदादा कहते हैं कि कर्म अलग नहीं, कर्म और योग दोनों साथ-साथ हृं। ऐसे कर्मयोगी कैसा भी कर्म होगा उसमें सहज सफलता प्राप्त करेंगे। चाहे स्थूल कर्म करते हो, चाहे अलौकिक करते हो। क्योंकि योग का अर्थ ही है मन-बुद्धि की एकाग्रता। तो जहाँ एकाग्रता होगी वहाँ कार्य की सफलता बंधी हुई है। अगर मन और बुद्धि एकाग्र नहीं हैं अर्थात् कर्म में योग नहीं है तो कर्म करने में मेहनत भी ज्यादा, समय भी ज्यादा और सफलता बहुत कम। कर्मयोगी आत्मा को सर्व प्रकार की मदद स्वत: ही बाप द्वारा मिलती है। ऐसे कभी नहीं सोचो कि इस काम में बहुत बिज़ी थे इसलिए योग भूल गया। ऐसे टाइम पर ही योग आवश्यक है। अगर कोई बीमार कहे कि बीमारी बहुत बड़ी है इसीलिए दवाई नहीं ले सकता तो क्या कहेंगे? बीमारी के समय दवाई चाहिए ना। तो जब कर्म में ऐसे बिजी हो, मुश्किल काम हो उस समय योग, मुश्किल कर्म को सहज करेगा। तो ऐसे नहीं सोचना कि यह काम पूरा करेंगे फिर योग लगायेंगे। कर्म के साथ-साथ योग को सदा साथ रखो। दिन- प्रतिदन समस्यायें, सरकम-स्टांश और टाइट होने हैं, ऐसे समय पर कर्म और योग का बैलेन्स नहीं होगा तो बुद्धि जजमेन्ट ठीक नहीं कर सकती। इसलिए योग और कर्म के बैलेन्स द्वारा अपनी निर्णय शक्ति को बढ़ाओ। समझा। फिर ऐसे नहीं कहना कि यह तो मालूम ही नहीं था - ऐसे भी होता है। यह पहले पता होता तो मैं योग ज्यादा कर लेता। लेकिन अभी से यह अभ्यास करो। जिस आत्मा को बापदादा की बैलेन्स के कारण ब्लैसिंग प्राप्त होती है उसकी निशानी क्या होगी? जो सदा ही बाप की ब्लैसिंग का अनुभव करते रहते हैं उसके संकल्प में भी कभी - यह क्या हुआ, यह क्यों हुआ, यह आश्चर्य की निशानी नहीं होगी। क्या होगा - यह क्वेश्चन भी नहीं उठेगा। सदैव इस निश्चय में पक्का होगा कि जो हो रहा है उसमें कल्याण छिपा हुआ है। क्योंकि कल्याणकारी युग है, कल्याणकारी बाप है और आप सबका काम भी विश्व कल्याण का है, कल्याण ही समाया हुआ है। बाहर से कितना भी कोई कर्म हलचल का दिखाई दे लेकिन उस हलचल में भी कोई गुप्त कल्याण समाया हुआ होता है और बाप के श्रीमत तरफ, बाप के सम्बन्ध तरफ अटेन्शन खिंचवाने का कल्याण होता है। ब्राह्मण लाइफ में क्या नहीं हो सकता? अकल्याण नहीं हो सकता। इतना निश्चय है या थोड़ा बहुत आयेगा तो हिल जायेंगे? समस्यायें आयें तो मिक्की माउस का खेल तो नहीं करेंगे? मिक्की माउस का खेल देखो भले लेकिन करना नहीं।

तो नये वर्ष का यही वरदान याद रखना है कि सदा बैलेन्स से हर घड़ी ब्लैसिंग लेते हुए उड़ते रहना है और उड़ाते रहना है। उड़ती कला वाले हैं, नीचे ऊपर होने वाले नहीं। साइड सीन देखने के लिए नीचे नहीं आना। नीचे आयेंगे ना तो फँस जायेंगे। इसलिए सदा उड़ते रहना। अच्छा।

नया वर्ष प्रारम्भ होते ही रात्रि 12 बजने के तुरन्त बाद बापदादा ने सर्व बच्चों को मुबारक दी

नया वर्ष अर्थात् सदा मुबारक लेने और देने का वर्ष। मास्टर दाता बन हर आत्मा को कोई न कोई शक्ति, गुण, शुभ-भावना, शुभ-कामना देने वाले दाता बनना। लेने का संकल्प नहीं करना। ले और फिर दे उसको दुआएं नहीं कहा जायेगा, उसको बिज़नेस कहा जायेगा। तो आप दाता के बच्चे मास्टर दाता हैं, कोई दे, न दे लेकिन आपको देना ही है। अगर कोई ऐसी चीज़ भी आपको दे जो आपको पसन्द नहीं आवे तो क्या करेंगे? उसको स्वीकार नहीं करो यानी अपने पास नहीं रखो। लेकिन उसको दो ज़रूर। ऐसे नहीं उसने कंकड़ दिया तो मैं क्या दूँ? कंकड़ को छोड़ दो लेकिन आप रत्न दे दो। क्योंकि आप रत्नागर बाप के बच्चे हो। तो दुआएं देना और दुआएं लेना - यही विशेष लक्ष्य इस नये वर्ष का हर समय जीवन में लाना है। जैसे गीत गाया ना - पुराने संस्कारों को विदाई दी, तो आप सबने विदाई दे दी? अच्छी तरह से उसको टाटा कर दिया या फिर आ जायेंगे? अच्छा- विदाई की बधाई। जब भी कोई बात आये तो यह वायदा याद करना। मैंने बॉय बॉय कर लिया तो फिर कैसे हाथ मिला सकते हैं। उसको दूर से ही शुभ-भावना शुभ-कामना की दृष्टि दे दो।

ग्रुप नं. 4- सभी फास्ट जाकर फर्स्ट आने वाले हो ना? नम्बरवन जाने वाली आत्माओं की विशेषता क्या होगी? जो बाप की विशेष श्रीमत है कि व्यर्थ को देखते हुए भी नहीं देखो, व्यर्थ बातें सुनते हुए भी नहीं सुनो - इस विधि वाला फास्ट और फर्स्ट सिद्धि को प्राप्त कर लेता है। तो ऐसे प्रैक्टिकल धारणा अनुभव होती है या थोड़ा-थोड़ा कभी सुन लेते हो? कभी देख लेते हो? तीव्र पुरू-षार्था के सामने सदा मंजिल होती है। वो यहाँ- वहाँ कभी नहीं देखेगा। सदा मंजिल की ओर देखेगा। फालो किसको करना है? ब्रह्मा बाप को। क्योंकि ब्रह्मा बाप साकार कर्मयोगी का सिम्बल है। कोई कितना भी बिजी हो लेकिन ब्रह्मा बाप से ज्यादा बिज़ी और कोई हो ही नहीं सकता। कितनी भी जिम्मेवारी हो लेकिन ब्रह्मा बाप जितनी जिम्मेवारी कोई के ऊपर नहीं है। इसलिए कोई भी कितना भी बिज़ी हो, कितनी भी जिम्मेवारी हो, लेकिन ब्रह्मा बाप जितना नहीं। तो ब्रह्मा बाप कर्मयोगी कैसे बने? ब्रह्मा बाप ने अपने को करनहार समझकर कर्म किया, करावनहार नहीं समझा। करावनहार बाप को समझने से जिम्मेवारी बाप की हो जाती है और स्वयं सदा कितने भी कार्य करे, कैसा भी कार्य करे - हल्के रहेंगे। तो आप सबने अपनी बुद्धि की तार बापदादा को दे दी है या कभी-कभी अपने हाथ में ले लेते हो? चलाने वाला चला रहा है, कराने वाला करा रहा है और आप निमित्त कर्म क्या करते हो? डांस कर रहे हो। कितना भी बड़ा कार्य हो लेकिन ऐसे समझो जैसे नचाने वाला नचा रहा है और हम नाच रहे हैं तो थकेंगे नहीं। कन्फ्यूज़ नहीं होंगे। एवरहैप्पी रहेंगे। इसलिए बापदादा सदा कहते हैं कि सदा नाचो और गाओ। क्योंकि ब्राह्मण जीवन में कोई बोझ नहीं है। ब्राह्मण जीवन अति श्रेष्ठ है। लौकिक जॉब भी करते हो तो डायेरक्शन प्रमाण करते हो, बोझ नहीं है। क्योंकि बाप डायरे-क्शन के साथ-साथ एक्स्ट्रा मदद भी देते हैं। अच्छा - ओम् शान्ति।